Friday, February 24, 2012

मैथिली कबिता: क्रान्ति


जीब के मनोकाङ्क्षा छौ त शहिद बनवाक बात नहि करय
ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै
याद रहय प्रत्येक डेग पर शासकबर्ग के बन्दुक छैक
प्रत्येक बाट मे बिघ्न-बाधा सभ छैक
परन्तु विचलित नहि हायब;
ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै

कहैय किछु, करैय किछु, बोली के व्यापारी सब अछि
खुजल आँख, बंद दिमाग, ई एकर पहिचान छैक ,
तखैन हमरा आँहा के कि के परेशानी अछि
ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै

स्मरण रहय यदि आँहा सत्य छि, तखैन नित्य छि
परिणाम के परवाह कायर करैत अछि
कहल गेल छैक-बिनाशाय चतुस्कृता
यदि आत्मा साफ अछि, तखैन चार-धाम घुमब तर्कपुण नहि छैक
यदि आँहा ठिक त आहाँ कऽ दिशा ठिक
दर्द स भरल आह! न करय
जीब के मनोकाङ्क्षा छौ त शहिद बनवाक बात नहि करय

ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै
याद रहय प्रत्येक डेग पर शासकबर्ग के बन्दुक छैक
प्रत्येक बाट मे बिघ्न-बाधा सभ छैक
परन्तु विचलित नहि हायब;
ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै

याद रहय जई सीता के माता कहि कऽ बजाबैत छि
ई शासकबर्ग ओई सम्मान पर कलंक लगौलैन अछि
ई स्थान त स्वतन्त्रता खोजैत अछि,
माता जानकी अपन सम्मान वापस माँगैत छैथ
माता के ईज्जत-लाज बचेवाक प्रत्येक मधेशी के कर्तव्य छियै
तखैन मन के किया कऽ बिचलित करैत छि
ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै

कहल गेल छैक-मंजिल उसी को मिली यहाँ,
जो उसूलों की खातिर,जान की बाजी लगाया
देह त्याग कर स भयवित नहि होउ,
आँहा एक सच्चा मधेश पुत्र छि जे अपन मार्ग स्वयं निर्माण करैत अछि,
जखैन अपन मंजिल नजदिक अछि तखैन शीश नहि झुकाउ ;
ई अपन मधेश छियै गाँधी के अहिंसा के शोधपत्र नहि छियै





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